मंगलवार, 24 सितंबर 2013

सुनो, यह चीखते हुए मेरे रोने की भी आवाज़ है

जिस घड़ी चाह कर
कुछ कर नहीं सकता हूँ मैं,
बन जाता हूँ
एक जोड़ी झपकती हुई आँखें,
निर्लिप्त, निर्विकार

मुझे देख चीखता है हड़ताली मजदूर,
और गूँजता है आसमान में नारा
”प्रबंधन के दलालों को
जूता मारो सालों को”-
तब बस एक जोड़ी
आँखें ही तो होता हूँ मैं,
भावहीन, झपकती हुई आँखें

जिस समय होता है स्खलित
नशेड़ची बेटे, बदचलन बेटी
या पुंसत्वहीनता का
अवसाद भुगतता अफसर
कुचलकर कदमों तले मेरा अस्तित्व,
तब भी एक जोड़ी झपकती हुई
भावहीन आँखें ही तो
होता हूँ मैं

आँखें जानती हैं
यदि उठीं वे प्रतिरोध में,
निकाल कर उन्हें
रख लिया जाएगा चाकरी पर
भावहीन झपकती आँखों का
एक नया जोड़ा

धर दी जाती है एक सुबह
बेमुरौव्वती के साथ हथेली पर
रात-दिन सर पर तलवार सी लटकती रही 
“पिंक स्लिप” ,
और देखती रह जाती हैं उसे
एक जोड़ा झपकती हुई आँखें/
हक-हिस्से नहीं इन आँखों के
विरोध में एक साथ तनती
हजारों मुटिठयों का दृश्य

तब भी होता हूँ मैं एक जोड़ा
झपकती हुई आँखें ही,
जब पुकारते हो तुम मुझे
खाया-पिया-अघाया कवि/
झुककर देखती हैं आँखें,
सुरक्षा की हजारों-हजार सीढि़यों में
अपने कदमों तले के दो लचर पायदान/
जिने नीचे जबड़े फैलाए खड़ा है वह गर्त
जिससे अभी-अभी उबरा
महसूसती हैं वे

एक जोड़ी आँखें हूँ मैं
जो बस झपक कर रह जाती हैं
इस जिद पर
कि बेटा नहीं मनाएगा
उनकी अनुपस्थिति मे जन्मदिन/
झपकती हैं जो
उदास बेटी के सवाल पर,
कि आखिर उसके पिता ही
क्यों रहते हैं उससे दूर/
पढ़ते हुए मासूम का राजीनामा,
कि जरूरी है रहना पिता का
स्कूल की फीस के लिए घर से दूर,
बस एक जोड़ा झपकती हुई आँखें 
रह जाता हूँ मैं

एक जोड़ी आँखें हूँ मैं
जो बस झपकती रह जाती हैं उस समय
जब कि चाहता हूँ चिल्लाऊँ पूरी ताकत से
या फिर रोऊँ फूट-फूट कर

और तब, जब कि घोषित कर दिया है तुमने मुझे
दुनिया पर शब्द जाल फेंकता धूर्त बहेलिया,
आज से तुम्हारे लिए भी हूँ मैं
बस झपकती हुई आँखें
एक जोड़ा भावहीन, झपकती हुई आँखें

यह झपकती हुई आँखें नहीं
पूरी ताकत से मेरे चीखने की आवाज़ है
सुनो,
यह चीखते हुए मेरे रोने की भी आवाज़ है

24-09-2013
हवाई, जिला अंजाव, अरुणाचल प्रदेश
 

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