शनिवार, 21 सितंबर 2013

तितली की मृत्यु का प्रातःकाल

इस डेढ़ पंखों वाली
तितली की मृत्यु का
प्रातःकाल है यह

वायु उन्मत्त, धूप गुनगुनी
वह जो है मेरा सुख
पीठ के बल पड़ी
इस तितली का
दुख है वह

योजन से कम नहीं
अधकटे पंख की दूरी
उसके लिए,
वह जो है मेरे लिए
बस एक हाथ

नहीं होगी शवयात्रा
इसकी/
शवयात्राएं तो होती हैं
उन शवों की
जिनसे निकलती है
सड़न की दुर्गंध
मरने के बाद गलने तक भी
खूबसूरत ही तो रहेंगे
इस तितली के पीले पंख

मरती हुई तितली के लिए
हिलाए हैं मैंने
उड़ान की मुद्रा में
फैले हुए हाथ,
बस इतना ही
कर सकता हूँ मै
उसके लिए

फर्क नहीं पड़ता
इलियास मुंडा की
बिना हथियार की
कान्स्टीबीटिल
कुकुरिया को
मेरे इस कृत्य से

और इससे पहले कि
ज्ञानी बाबू आकर
समझाएं मुझे
तितली नहीं, यह वास्प है,
रख दिया है मैंने
मरती हुई तितली को
वायु के निर्दय
थपेड़ों से दूर छांव में

यह उस सुन्दर
डेढ़ पंख की तितली की
मृत्यु का प्रातःकाल है

भले ही नाराज होओ
तुम मुझ पर 
भाषा की शुद्धता के लिए,
नहीं पुकारूंगा मैं
इस एकांतिक इतवार को
रविवार आज

नहीं, कतई नहीं



@@@@@@@@
हवाई, जिला-आँजो, 
अरुणाचल प्रदेश
22-09-13

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