सोमवार, 20 जनवरी 2025

बेटे पर दो कविताएँ 

 बेटा-1

छुटपन से लेकर
किशोरावस्था तक
ऐसा कोई दिन नहीं हुआ
जब राह चलते
उसके पाँव न टकराए हों
मेरे पाँवों से    
 
कभी-कभी
मेरी झिड़की भी -
ज़रा दूरी बनाकर चलो ना!’
 
अब जब चलने लगा है
सम्हल कर दूर-दूर,
मैं अक्सर देखता हूँ
पाँवों के बीच की
बढ़ी हुई दूरियों को
कई-कई बारI
 
बेटा-2
 
गलत दिशा से
आते हैं ज़ल्दियाए
डिलीवरी वाले लड़के
पर मुझे आदत है
केवल सही दिशा से
आती गाड़ियों को
देखने की
 
एक तो लगभग
चढ़ा ही देता है
मोटर-साइकिल
मेरे पैर पर 
 
पारा चढ़ने को है
कि बेटे ने कर दिया
रफ़ा-दफ़ा
सफ़ाई देते लड़के को
 
'देखते नहीं,
गलत आ रहा'
गरज़ रहा हूँ मैं
 
'रहने दीजिए,
दोनों तरफ़ देखने की
आदत डाल लीजिए,
ये दिल्ली है,
समझाता है मुझको
मुस्कुराते हुए!
 
बेटा बड़ा हो गया है
 
शायद लौट रहे
मेरे दोबारा
बच्चा होने के दिनI  

पद्मनाभ , २०-०१-२०२५

   

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