भगदड़
क्या वह आदमी
जिसने खोया है
मक्के की भगदड़ में
अपनी माँ को
हँस सकेगा
मरते लोगों पर
या वह, जिसने खोया है
अपना बेटा
महाकुम्भ की भगदड़ में
अब कभी हँसेगा
हज में मची भगदड़ पर
हज और महाकुम्भ में
भगदड़ के बाद
लाशें थीं एक समान मुद्राओं में
चेहरों पर अंतिम भाव
बदहवासी, भय और हताशा के
जब मचती है भगदड़
तब मरता नहीं है धर्म
मरती नहीं है कोई किताब
मरता है तो बस एक आदमी
वह अब किसी धर्म का अनुयायी नहीं
पर अब भी होता है
किसी का पिता
किसी का भाई
किसी की माँ, बहन, बेटी
किसी का आसरा
किसी की उम्मीद
मुझे नहीं पता कि
धर्मस्थलों में मरकर,
वह भी भगदड़ की
अकाल मृत्यु में,
मिलता होगा कैसा स्वर्ग
पर मैं बखूबी जानता हूँ
पिता को अकालमृत्यु में
खो देने पर
मिलने वाले नर्क को।
30/01/2025
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